मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया

August 18 2015
Written By GujaratilexiconGurjar Upendra

मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर 
मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है 
सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं 
लवें बुझा दी हैंअपने चेहरों की, हसरतों ने 
कि शौक़ पहचनता ही नहीं 
मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं

मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से 
कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर

नज़्म उलझी हुई है सीने में 
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर 
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह 
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं 
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम 
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है 
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

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